Sunday 26 July 2020

बिहार के मुंगेर से निकलकर भारत के सूर्य बने दिनकर की 108वीं जयंती

 हिन्दी क' प्रसिद्ध कवि सब में स' एक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर कs जन्म 23 सितंबर 1908 कै सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार) में भेल रहैन ।



कियो जानैत नै छल कि सिमरिया घाट कए बाउल पर खेला वाला बालक एक दिन अपन तर्जनी उठाकर कहत - लोहे के पेड़ हरे होंगे तू गान प्रेम का गाता चल, नम होगी यह मिट्टी जरूर, आंसू के कण बरसाता चल।  
दिनकर अल्लामा इकबाल आर रवींद्रनाथ टैगोर के अपन प्रेरणा स्रोत मानैत छलाह । दिनकर टैगोर के रचना के बंगाली सs  हिन्दी में अनुवाद कएला ।
किसान रवि सिंह तथा उनकी पत्नी मन रूप देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। रामधारी सिंह दिनकर एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते थे। उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण मिलते हैं। दिनकर के पिता एक साधारण किसान थे और दिनकर दो वर्ष के थे, जब उनका देहावसान हो गया। परिणामत: दिनकर और उनके भाई-बहनों का पालान-पोषण उनकी विधवा माता ने किया। 

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने हिंदी साहित्य में न सिर्फ वीर रस के काव्य को एक नयी ऊंचाई दी, बल्कि अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का भी सृजन किया।
इसकी एक मिसाल 70 के दशक में संपूर्ण क्रांति के दौर में मिलती है। दिल्ली के रामलीला मैदान में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने हजारों लोगों के समक्ष दिनकर की पंक्ति ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ का उद्घोष करके तत्कालीन सरकार के खिलाफ विद्रोह का शंखनाद किया था।
मौजूदा दौर के मशहूर कवि प्रेम जनमेजय भी मानते हैं कि दिनकर ने गुलाम भारत और आजाद भारत दोनों में अपनी कविताओं के जरिये क्रांतिकारी विचारों को विस्तार दिया। जनमेजय ने ‘भाषा’ के साथ बातचीत में कहा, ‘आजादी के समय और चीन के हमले के समय दिनकर ने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों के बीच राष्ट्रीय चेतना को बढ़ाया।’
दिनकर का पहला काव्यसंग्रह ‘विजय संदेश’ वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद उन्होंने कई रचनाएं की। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘हुंकार’ और ‘उर्वशी’ हैं। उन्हें वर्ष 1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।
पद्म भूषण से सम्मानित दिनकर राज्यसभा के सदस्य भी रहे। वर्ष 1972 में उन्हें ज्ञानपीठ सम्मान भी दिया गया। 24 अप्रैल, 1974 को उनका देहावसान हो गया। दिनकर ने अपनी ज्यादातर रचनाएं ‘वीर रस’ में कीं।
इस बारे में जनमेजय कहते हैं, ‘भूषण के बाद दिनकर ही एकमात्र ऐसे कवि रहे, जिन्होंने वीर रस का खूब इस्तेमाल किया। वह एक ऐसा दौर था, जब लोगों के भीतर राष्ट्रभक्ति की भावना जोरों पर थी। दिनकर ने उसी भावना को अपने कविता के माध्यम से आगे बढ़ाया। वह जनकवि थे इसीलिए उन्हें राष्ट्रकवि भी कहा गया।’
देश की आजादी की लड़ाई में भी दिनकर ने अपना योगदान दिया। वह बापू के बड़े मुरीद थे। हिंदी साहित्य के बड़े नाम दिनकर उर्दू, संस्कृत, मैथिली और अंग्रेजी भाषा के भी जानकार थे। वर्ष 1999 में उनके नाम से भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया।

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